संस्कार हमारी धरोहर
(संस्कार हमारा धरोहर )
जब कभी हमारे जिह्वा पर संस्कार शब्द आता है तो मन पुलकित हो उठता है लेकिन तभी कुछ सोचकर मन उदास हो जाता है । ऐसा इसलिए क्योंकि जिस संस्कार को कभी हम अपना अंग मानते थे उसे आज हम एक बंधन मान बैठे हैं ।
बहुत समय पहले जब हम बाहर निकलते थे तो मां बाऊ जी को और घर के सभी आदरणीय जनों के चरण स्पर्श करके निकलते थे और जो हमें बाहर हमसे बड़ा मिलता था यदि हम उससे परिचित होते थे तो उसे भी प्रणाम करते थे जिसके फलस्वरूप यही आदत हमारे बच्चे भी सीखते थे क्योंकि अक्सर छोटे बच्चे वहीं करते हैं जो घर के बड़े करते हैं यही कारण था कि सभी में संस्कार बना रहता था बड़ों को सम्मानित करने का यहां केवल प्रणाम की बात नहीं है यहां आचरण की बात है किसी ने कहा है कि हम चाहे यह न जानते हों कि किसी व्यक्ति ने कितनी उपलब्धियां प्राप्त कर रखी हैं किन्तु यदि उसका पता लगाना है तो हमें उसके आचरण को देखना चाहिए। क्योंकि आचरण ही सिद्ध कर देता है कि आप कितने उपलब्धि और कितने सम्मान के योग्य हैं यही कारण है कि हम अपने संस्कारों को अपना धरोहर समझते थे जो कि हमें हमारे पूर्वजों से विरासत के रूप में मिलती थी किन्तु खेद की बात है अत्याधिक स्नेह देने के कारण हम अपने बच्चों को संस्कार देना भूल जाते हैं और जब वही बच्चे बड़े होकर माता पिता का अपमान करते हैं तो उन्हें बुरा लगता है ।
इसमें गलती किस की है बच्चों ने तो देखा है वहीं कर रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं हम चूक कर देते हैं संस्कार और दुष्टता में अंतर सिखाना जब हम बच्चों के सामने स्वयं ही बड़ों का सम्मान नहीं करेंगे तो बच्चे बड़े होकर हमारा सम्मान नहीं करेंगे यही नियति बन जाती है जो हम अपने बड़ों को देते हैं वहीं हमें अपने छोटों से मिलता है अतः हमें चाहिए की हम अपने इस बहुमूल्य धरोहर को सम्हाल कर रखें और अपने पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित और मजबूती से उन्हें सौंपते रहें ताकि संस्कार और संस्कृति दोनों सुरक्षित रह सके और किसी भी परिजन को इस बात कि आत्मग्लानि न हो कि उसके बच्चे उसका सम्मान नहीं करते।।
धन्यवाद
लेखक ----- अरुण कुमार शुक्ल
सिद्धार्थ नगर यूपी
Mithi . S
01-Aug-2022 04:47 PM
Nice
Reply
Shashank मणि Yadava 'सनम'
01-Aug-2022 07:07 AM
Woow,,,, लाजवाब लाजवाब लाजवाब जी,,,, बहुत ही सुंदर और बोधमय लेख,,,,,
Reply
Shnaya
01-Aug-2022 01:55 AM
👌👏
Reply